Sunday, 8 February 2015

New article Donation during Election

चुनावी चंदा और राजनीतिक सुधार
भारत में जितने जरूरी आर्थिक, प्रषासनिक और न्यायिक सुधार हैं उतने ही जरूरी राजनीतिक और निर्वाचन सुधार भी हैं। अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी द्वारा संदिग्ध और अनुचित तरीके से चंदा लेने का जो मामला प्रकाष में आया उस पर फिर से सभी राजनीतिक दलों द्वारा आरोप-प्रत्यारोप षुरू हो गये। सच्चाई क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन सच यह है कि हर राजनीतिक दल वास्तव में चुनाव सुधार, चंदा लेने में पारदर्षिता, आंतरिक लोकतंत्र और सूचना के अधिकार से खुद को दूर ही रखना चाहता है अन्यथा क्या कारण है कि केन्द्रीय सूचना आयोग के दिषा-निर्देष के बावजूद राजनीतिक दलों ने न तो जनसूचना अधिकारी तैनात किए और न ही अब तक प्राप्त चंदों का वास्तविक और आधिकारिक ब्यौरा सार्वजनिक किया है। याद रखिए, भारत में कोई भी सुधार सफल नहीं हो सकते जब तक राजनीतिक और चुनाव सुधार बड़े पैमाने पर और यथार्थ रूप से लागू न किए जाएँ क्योंकि सभी तरह के भ्रश्टाचार की जड़ें कहीं न कहीं चुनाव, चंदा और राजनीतिक दलों के अपारदर्षी तंत्र से जुड़ती है। जाहिर सी बात है कि यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देती है तो उसके अपने क्या निहित लाभ या स्वार्थ है? उसका स्रोत क्या है? वह किस जरिए से कमाया गया धन है? और किसी राजनीतिक दल को क्यों दिया जा रहा है? यह सब देष के लिए जानना बेहद जरूरी है। जिस तरह से चुनाव लगातार मंहगा होता जा रहा है, प्रचार-तंत्र, विज्ञापन, पेड न्यूज, मीडिया मतदाताओं को प्रलोभन और अन्य तौरतरीके, जो गलत और गैरकानूनी भी है, चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, उससे देष का खासा सम्पन्न व्यक्ति भी स्वयं चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हो सकता। राजनीतिक दलों का यह कहना कि वे अपना ब्यौरा चुनाव आयोग को देते हैं तथा आयकर रिटर्न भरते हैं, इसलिए अलग से उसकी सूचना जरूरी नहीं है और यदि कोई इनसे संबंधित सूचनाएं चाहता है तो वह आयोग से इसकी जानकारी ले सकता है, कतई तर्कसंगत और सही नही है। राजनीतिक दल भी निष्चित रूप से लोकप्राधिकारी की श्रेणी में आते हैं क्योंकि 1. सरकार बनाने और गिराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 2. उन्हें रियायती दरों पर आवास, कार्यालय इत्यादि के लिए सरकार द्वारा भवन और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है। 3. हवाई जहाज, रेलवे, राज्य परिवहन इत्यादि से यात्राओं पर उन्हें भत्ता, कूपन व अन्य रियायतें दी जाती हैं। 4. सरकार द्वारा बिजली, पानी, टेलीफोन, स्टाफ जैसी अन्य सुविधाएं राजकोश के खर्चे पर दी जाती है। 5. वे भारतीय संविधान के तहत देष की राजनीतिक कार्यपालिका का हिस्सा होते हैं, इसलिए वे निष्चित रूप से न सिर्फ सूचना के अधिकार के दायरे में है बल्कि उनके वार्शिक प्राप्तियों पर कुछ न्यूनतम आयकर भी लिया जाना चाहिए और सभी प्रकार के आमदनी, चंदा या अन्य किसी भी स्रोत से विय सहायता का लिखित रिकार्ड उनकी वेबसाइट्स, कार्यालय, आयकर विभाग और चुनाव आयोग को उपलब्ध कराना चाहिए। आखिर क्या कारण है कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एक हो जाते हैं और राजनीतिक सुधार तथा चुनावी पारदर्षिता के लिए प्रयास नहीं करते? स्वयं प्रधानमंत्री श्री मोदी को इसकी पहल करनी चाहिए और सबसे पहले बीजेपी और उसकी सहयोगी दलों को इस दिषा में कदम उठाते हुए एक निर्णायक और सकारात्मक संदेष राष्ट्र को देना चाहिए वरना श्री अरविंद केजरीवाल की यह धमकी कि अगर मैने कुछ भी गलत किया है तो सरकार मुझे गिरफ्तार करके दिखाए, स्वयं बीजेपी की सत्यनिश्ठा को संदिग्ध करती है।
-डाॅ. प्रत्यूशमणि त्रिपाठी

Tuesday, 13 January 2015

New Article on आतंक का राजनीतिकरण

आतंक का राजनीतिकरण

अभी हाल ही मंे   पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल ने देश  के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियांे को चिट्ठी लिखकर उन राज्यों मंे बंद सिक्ख आतंकियों को रिहा करने की मांग की है। याद कीजिए इससे पहले उत्तर प्रदेश  सरकार ने भी विभिन्न आतंकवादी गतिविधियिों मे लिप्त मुस्लिम आतंकियों को रिहा करने के लिए मुकदमें वापस लेने का दिषा निर्देष दिया था और संबंधित जिलाधिकारियों से आख्या मांगी थी कि ऐसे किन मामलों मंे अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

इस पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश  सरकार को फटकारते हुए कहा था कि आप इन आतंकियों को पुरस्कृत क्यों नहीं कर देते ? सवाल इस बात की है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले या बाद, आखिर किस मंशा  से ऐसी मांग उठाते हैं ? अगर वास्तव में कोई निर्दोश व्यक्ति पुलिस द्वारा ऐसे मामलों में गलत तरीकें से फंसाया गया है तो निष्चित ही राज का यह दायित्व है किऐसे ही बेगुनाह व्यक्ति को छोडा जाए और उसे सजा न मिले, इसका प्रयास हर राज्य सरकार को करना चाहिए फिर चाहे वह आतंकी गतिविधियों का अपराध हो या किसी भी अन्य प्रकार का और वह निर्दोश व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय को हो, उसे बिल्कुल भी सजा नहीं मिलनी चाहिए, यह कानून की मंषा भी है और राज्य की जिम्मेदारी भी। लेकिन धार्मिक, पंथिक या जातिगत आधार पर आतंकियों एवं अपराधियों को छोड़ने या पकड़ने की मांग अथवा कोशिश  न सिर्फ असंवैधानिक और विधि विरुद्ध है बल्कि देश  की एकता, सुरक्षा और अखंडता के लिए बड़ा खतरा भी है।

आतंकी या अपराधी गतिविधियों को धर्म के चष्में से देखकर जायज या नाजायज नहीं ठहराया जा सकता है। गांधी की हत्या करने वाले गोडसे को भी इसी आधार पर महिमामंडित करना उन सभी लोगों के त्याग और बलिदान का उपहास करना है, जिन्होंने राषट्र  की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। हत्या सिर्फ हत्या है, जो एक जधन्य व दंडनीय अपराध है फिर वह चाहे किसी भी अर्थ या उद्देष्य कि लिए की गई हो। इसी तरह से सिक्ख हो, ईसाई हो या फिर मुस्लिम या हिन्दू हो, निर्दोष लोगों को कत्लेआम, मासूम बच्चों की हत्या, पत्रकारों का गला काटना या फिर लोगों को गोली या बम से उडा देना किसी भी धार्मिक या पंथिक आधार पर स्वीकार्य नहीं हो सकता है।

आज जब आतंकवाद का वैश्वीकरण हो गया है और भारत सहित अफगानिस्तान, पाकिस्तान, दक्षिण पूर्व एषिया और मध्य पूर्व से होते हुए इसकी आंच ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस को भी जलाने लगी है तो समूचे विष्व समुदाय को समुचित, सुनियोजित और रणनीतिक आधार पर एकजुट होकर आतंकवाद का मुकाबला करना होगा वरना आने वाली पीढ़ियां इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाने के लिए मजबूर होगी। भूराजनीतिक कारणों से या मजहबी आधार पर किसी भी देष में आतंकवाद का समर्थन या आतंकी गुटों को प्रश्रय, सहयोग और सहायता दरअसल हर उस कोषिया पर कुठाराधात है जो आतंकवाद का विरोध करने के लिए उठाई जाती है। याद रखिए अगर हम आज नहीं चेते तो कल बहुत देर हो चुकी होगी और यदि आज भी हमने इन समूहों और विचारधाराआंे को धार्मिक, राजनीतिक या किसी अन्य आधार पर भरण पोशण किया तो हम खुद अपने को इस आग मंे जलने से बचा नहीं पायेंगे। यह समय राजनीति करने का नहीं, सचेत होकर कार्यवाही करने का है।

-डाॅ प्रत्यूष मणि त्रिपाठी

Wednesday, 24 September 2014

Article in Lokswami


Article on Telangana

तेलंगाना एवं नये राज्यों की मांग
       2 जून 2014 को देष के 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना के अस्तित्व में आने के बाद देष के भिन्न राज्यों की मांग फिर से जोर से पकड़ने लगी है जो आने वाले विधान सभा चुनाव में और भी अधिक मुखर हो सकती है। 1956 में प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिषों पर आधारित राज्यों के पुनर्गठन से देष के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों की आकांक्षाओं की संतोशजनक पूर्ति नहीं हो सकी तथा भाशायी, मानवीय और सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर राज्यों के पुनः बंटवारे की मांग होने लगी। अनेक राज्यों के पुर्नविभाजन की मांग उठने लगी। ऐसे में भारत की राश्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाये रखकर राज्यों का विभाजन करना एक गम्भीर चुनौती थी। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिषों के लागू होने के पांच वर्शों के भीतर ही अन्य राज्यों के निर्माण के लिए आवाज उठने लगी थी, फलस्वरूप द्विभाशी मुम्बई प्रांत को 1 मई 1961 में गुजराती भाशा गुजरात और मराठी भाशा महाराश्ट्र में विभाजित कर दिया गया। गोवा, दमन और दीव, जो पुर्तगाली उपनिवेष थे और भारत मे यूरोपीय आधिपत्य की अंतिम निषानी थे, को विदेषी षासन से मुक्ति मिलने के उपरान्त 16 दिसंबर 1961 को भारतीय संघ में मिला लिया गया। इस प्रकार इस घटना ने भारतीय संघ के प्रादेषिक एकीकरण को पूर्ण किया था।
       पूर्वोŸार भारत में जनजातीय लोगों की अपनी विषिश्ट पहचान बनाये रखने हेतु नवीन राज्यों की मांग के संदर्भ में वहां अनेक नवीन राज्यों का निर्माण किया गया। 1957 में असम का उŸार-पूर्वी भाग अलग कर उसे उŸार-पूर्वी सीमांत एजेन्सी ;छण्म्ण्थ्ण्।ण्द्ध नाम दिया गया। नागा पहाडि़यों का इलाका एक केन्द्र षासित प्रदेष था, और उसे नागा पहाड़ी त्वेनसांग क्षेत्र कहा जाता था। उसे 1961 में पुनः नामकरण करके नागालैण्ड नाम दिया गया और 1 दिसंबर 1963 को राज्य का दर्जा दे दिया गया। मणिपुर को राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत एक संघीय प्रदेष का दर्जा दिया गया था, तथा 1972 में उसे संघ के एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। मेघालय को असम राज्य के अन्तर्गत ही 2 अप्रैल 1970 को एक स्वायŸाषासी प्रदेष का दर्जा दिया गया। उसे पूर्ण राज्य के रूप में मान्यता 21 जनवरी 1972 को ही मिल सका। त्रिपुरा को 1947 में ही भारतीय संघ में षामिल कर लिया गया था और 1956 में उसे एक केन्द्रषासित प्रदेष का दर्जा मिला। 1972 में उसे एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। इस प्रकार 1972 में पूर्वोŸार भारत में तीन नवीन राज्यों का निर्माण हुआ। सिक्किम 1974 में भारत का एक संरक्षित क्षेत्र ;च्तवजमबजवतंजमद्ध बना, और उसके बाद उसे भारत के सह राज्य ;।ेेवबपंजमक ैजंजमद्ध का दर्जा मिला। 14 अप्रैल, 1975 को हुए जनमत संग्रह के परिणामों के आधार पर वह भारत का एक अनन्य हिस्सा बन गया। उŸार-पूर्वी सीमांत एजेंसी ;छण्म्ण्थ्ण्।ण्द्ध को 20 जनवरी 1987 में एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और उसका पुनर्नामकरण करके अरूणाचल प्रदेष नाम दिया गया। मिजोरम 1972 तक असम के जिलों में से एक था, परंतु उसी वर्श उŸार-पूर्वी पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के साथ ही उसे एक केन्द्र षासित प्रदेष का दर्जा दिया गया। उसे पूर्ण राज्य का दर्जा 20 जनवरी 1987 को प्रदान किया गया।
       दक्षिण भारत में देखा जाय, तो मैसूर राज्य का 1956 में निर्माण हुआ था और कन्नड़ भाशी लोगों की मांग को देखते हुए उसका पुनर्नामकरण करके कर्नाटक कर दिया गया। गोवा, जो 1961 में ही स्वतंत्र हुआ था, उसे 30 मई 1987 को एक राज्य का दर्जा दे दिया गया, परंतु दमन और दीव केन्द्रषासित प्रदेष बने रहे।
       देष के उŸार-पष्चिमी भाग में पंजाब, जो एक द्विभाशी राज्य था, को 1 नवंबर 1966 को पंजाबी भाशा राज्य पंजाब और हिन्दी भाशी राज्य हरियाणा में विभाजित कर दिया गया। इस प्रकार हरियाणा के रूप में एक नवीन राज्य का उदय हुआ। साथ ही साथ पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेष में मिला दिया गया। हिमाचल प्रदेष को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को ही मिला।
       नवंबर, 2000 में तीन राज्यों का गठन हुआ। मध्य प्रदेष को विभाजित करके 1 नवंबर 2000 को भारत के 26वें राज्य के रूप में छŸाीसगढ़ राज्य का निर्माण किया गया। इससे जनजातीय लोगों की लम्बे समय से चली आ रही मांग पूरी हो गयी। उŸार प्रदेष के पहाड़ी क्षेत्रों को भी अलग करके 9 नवंबर 2000 को एक नवीन राज्य उŸाराखंड का निर्माण किया गया। यह भारत का 27वां राज्य बना। इस नवीन राज्य की सीमाएं उŸार में चीन के साथ पूर्व में नेपाल के साथ अंतर्राश्ट्रीय सीमाएं भी बनाती हैं। भारत के 28वें राज्य के रूप में झारखंड का निर्माण 15 नवंबर 2000 को बिहार का विभाजन करके किया गया। इस जनजातीय बहुल राज्य में मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार की पर्वतीय भूमि तथा संथाल परगना षामिल था तथा उसकी अपनी विषिश्ट सांस्कृतिक परम्पराएं थी। अभी तक यह भारत का सबसे युवा राज्य था, जो अब तेलंगाना है।
       देष में कुछ बिखरे हुए लघु क्षेत्र हैं, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रषासित है और केन्द्रषासित प्रदेष के नाम से जाने जाते हैं। उनकी संख्या वर्तमान में सात है- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा एवं नगर हवेली, दमन एवं दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप तथा पुडुचेरी।
       अतः स्पश्ट है कि देष के 29 राज्यों में से राजस्थान सबसे बड़ा राज्य है जिसका क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किमी. है। देष के तीन बड़े राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेष और महाराश्ट्र मिलकर देष के कुल क्षेत्रफल का 3 प्रतिषत भाग धारण करते हैं। दूसरी ओर गोवा सिर्फ 3,702 वर्ग किमी. क्षेत्रफल के साथ सबसे छोटा राज्य है। असम और अरूणाचल प्रदेष के अपवादों को छोड़कर, पूर्वोŸार भारत के सभी राज्य लघु आकार वाले हैं। प्रषासनिक दृश्टि से उŸार प्रदेष देष का सबसे बड़ा राज्य है जिसमें 75 जिले हैं, जबकि गोवा में सिर्फ 2 जिले हैं। बिहार, छŸाीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेष, झारखंड, मध्य प्रदेष, उŸार प्रदेष, उŸाराखंड और दिल्ली प्रदेषों में हिन्दी मुख्य भाशा के रूप में प्रयोग की जाती है।
       इनके अलावा कुछ और नवीन राज्यों के निर्माण की भी मांग लम्बे समय से चलती रही है। उदाहरण के लिए महाराश्ट्र का विदर्भ क्षेत्र तथा उŸार प्रदेष का पष्चिमी भाग (हरित प्रदेष) तथा पूर्वी भाग (पूर्वांचल), रायलसीमा (आंध्र प्रदेष), उदयाचल (असोम), वृहŸार नागालैण्ड (उŸार-पूर्व), गोरखालैण्ड (पष्चिम बंगाल) इत्यादि  की मांग तेज हो रही है परंतु उनका भविश्य देष के भूराजनैतिक दषा पर निर्भर करेगा।
       अतः यह उपयुक्त समय है कि जैसे दूसरा प्रषासनिक सुधार आयोग बना, योजना आयोग का अब पुनर्गठन किया जा रहा है तथा संघ-राज्य सम्बन्धों को मजबूत करने के लिए सरकार नई कोषिष और पहल कर रही है, मोदी सरकार के द्वारा दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग का भी निर्माण किया जाये जो क्षेत्रवार नये राज्यों के गठन पर विस्तृत और गंभीरतापूर्वक विचार करे और 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले देष को एक मजबूत संघात्मक ढांचा और विकसित राश्ट्र का पारितोशक प्रदान करे।
-डा. प्रत्यूशमणि त्रिपाठी