Saturday 13 June 2015

My NewArticle on We, Bangladesh & Modi

बांग्लादेष, मोदी और हम

1971 में बांग्लादेष भारत के सहयोग से एक स्वतंत्र देष के रूप में अस्तित्व में आया तो सहज यह सोचा-समझा जाता था कि भारत और बांग्लादेष के बीच हमेषा बहुत अच्छे और मधुर संबंध हमेषा बने रहेंगे। न सिर्फ बांग्लादेष के निर्माण में भारत की महŸवपूर्ण भूमिका थी बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक समानताएं भी दोनों देषों को एक दूसरे से बहुत निकटता से जोड़ती थी लेकिन दुर्भाग्य से बीच के कुछ वर्शों में हमारे रिष्ते पड़ोसी देष के साथ अच्छे नहीं रह गये। एक तो फौज़ी हुकूमत और फिर भारत-विरोधी सोच ने दोनों देषों के बीच गहरी खाई पैदा कर दी। इस लिहाज से संसद द्वारा पारित जो कानून भारत और बांग्लादेष के बीच सीमा-विवाद को सुलझाता है वह निष्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम है। पष्चिम बंगाल के साथ हमारे सभी पूर्वोŸार के राज्य जिनसे बांग्लादेष की सीमा मिलती है के आपसी सहयोग से ही यह संभव हो सका है कि आज भारत और बांग्लादेष में फिर से अच्छे संबंध पुनर्जीवित हो रहे हैं।
  श्री नरेन्द्र मोदी ने जिस राजनीतिक सूझबूझ और कौषल के साथ इस विशय पर देष की संबंधित राज्य सरकारों और बांग्लादेष की सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है उसकी चर्चा मीडिया में अपेक्षाकृत कम रही है। 6 जून को उनका बांग्लादेष का सुश्री ममता बैनर्जी के साथ दौरा जरूर सुर्खियों में रहा लेकिन उसके पहले का जो प्रयास और पुरूशार्थ किया गया उस पर अधिक प्रकाष नहीं पड़ा और यह व्यापक चर्चा और चिन्तन के भी परे रहा। जबकि भारत के किसी भी पड़ोसी देष के साथ सीमा-विवाद का इस प्रकार निपटारा अतीत में नहीं हुआ है और आज भी पाकिस्तान, चीन और यहाँ तक कि श्री लंका के साथ भी हमारी सीमाओं पर विवाद होते रहे हैं। पाकिस्तान और चीन की अपनी-अपनी राजनीतिक मजबूरियाँ, सोच, सामरिक रणनीतिक कारण और हठधर्मिता इसके पीछे वजह रहे हैं लेकिन बांग्लादेष के साथ भी यह कोई बहुत आसान काम नहीं था।
  यह देखना होगा कि धरातल पर यह कानून और समझौता यथार्थ में कितना खरा उतरता है क्योंकि इसके साथ कई चुनौतियां और समस्यायें अभी भी बने हुए हैं जैसे कि उन अवैध बांग्लादेषियों का क्या होगा जो लाखों की संख्या में भारत में बतौर नागरिक रह रहे हैं ? बांग्लादेष के साथ हमारी नदी-सीमा और जल-विवाद का निर्धारण कैसे होगा ? दोनों देषों के बीच जो नदियों का भौगोलिक और प्राकृतिक प्रवाह है जिनके कारण सीमा का निर्धारण बदलता रहता है उसे कैसे सुनिष्चित किया जाएगा ? दोनों देषों की सीमाओं पर कुछ ऐसे गाँव, बस्तियाँ और परिवार रहते हैं जिन्हें भारत और बांग्लादेष दोनों की ही सरकारों से कोई मान्यता प्राप्त नहीं है, उनका क्या होगा?  उनकी नागरिकता, जन-सुविधाएँ, सम्पर्क-मार्ग, संचार, बिजली व अन्य आपूर्ति सुविधाएँ उन्हें कौन उपलब्ध कराएगा ? हमारे देष के हित और भौगोलिक क्षेत्र पर बिना कोई नकारात्मक प्रभाव पड़े बांग्लादेष के साथ हमारे आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत बने रहे इसके लिए क्या उपाय किए जायेंगे ? ऐसे कई सारे सवाल हैं जिनका जवाब संसद में पारित कानून और श्री मोदी के बांग्लादेष दौरे से भी अब तक नहीं मिल सके हैं, फिर भी निष्चित रूप से यह एक लम्बी और बड़ी यात्रा की दूरी को तय करने के लिए पहला और महŸवपूर्ण कदम है।
डाॅ0 प्रत्यूशमणि त्रिपाठी, निदेषक, वैद्स आईसीएस लखनऊ




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