Monday 3 August 2015

UP Ka Vyapam

यूपी का व्यापम

        राजकीय सेवाओं में सफलता, सामाजिक यष और सम्मान दिलाती है। हर माता-पिता यह चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी आईएएस, पीसीएस, इंजीनियर, डाॅक्टर बने, या फिर किसी अन्य सरकारी सेवा में उन्हें नौकरी करने का अवसर मिले। इसके लिए छात्र-छात्राएं कठोर परिश्रम करते हैं, साल-दर-साल प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा या साक्षात्कार में सफलता-विफलता से दो-चार होते हैं और फिर उसी मनोयोग से अगली परीक्षा की तैयारी में दुगुनी मेहनत के साथ जुट जाते हैं। लेकिन दुःख तब होता है जब ऐसे परिश्रमी और योग्य छात्र-छात्राओं का चयन व्यवस्थागत दोशों एवं राजनीतिक विचारधारा और हस्तक्षेप के कारण नहीं हो पाता। Ÿार प्रदेष में विगत तीन वर्शों में राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा जितनी भी रिक्तियों के लिए भर्ती और चयन प्रक्रिया की गयी वह सब किन्हीं किन्हीं कारणों से विवादग्रस्त होती चली गयी। लेकिन इस बार कारण प्रषासनिक विफलता नहीं, संस्थागत दोश एवं राजनीतिक हस्तक्षेप कहीं अधिक है। प्रान्तीय सेवाओं में चाहे वह इंजीनियरिंग हो, मेडिकल या फिर सिविल सेवा, समुदाय विषेश के लोगों की जिस प्रकार भर्ती की गयी, साक्षात्कार में जितने अधिक अंक दिए गए, अनावष्यक गोपनीयता बरती गयी, चयन प्रक्रिया के प्रारूप में बदलाव किया गया और तमाम आरोपों के बावजूद आयोग की निश्पक्षता और षुचिता को बहाल करने की कोषिष नहीं की गयी उससे साफ पता चलता है कि राज्य सरकार अगले चुनाव के पहले अपने लोगों को अधिकाधिक पदों पर नियुक्त कर देना चाहती है तथा एक खतरनाक और गंभीर राजनीतिक सोच के तहत नियुक्तियों में धार्मिक एवं जातिगत कार्ड का इस्तेमाल कर रही है। यह Ÿार प्रदेष का एक छोटा व्यापम है जिसमें यद्यपि कि किसी की हत्या या खुदकुषी या संदिग्ध मौत के आरोप तो नहीं है लेकिन छात्रों में गहरा आक्रोष और पीड़ा है।
        यह सिर्फ लोक सेवा आयोग ही नही बल्कि Ÿार प्रदेष के अन्य सभी भर्ती और चयन आयोगों और बोर्ड पर गंभीर आरोप है कि क्षेत्र विषेश, जाति और समुदाय विषेश के लोगों को लेखपाल से लेकर षिक्षक, सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तथा डाॅक्टर-इंजीनियर से लेकर एसडीएम तक के पदों पर राजनीतिक सोच के तहत भयंकर अनियमितताओं और प्रक्रियाओं का दुरपयोग करते हुए नियुक्त किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही के एक निर्णय में ऐसे ही एक चयन आयोग के अध्यक्ष और सदस्य को कार्य करने से रोक दिया क्योंकि वे इस पद के योग्य नहीं थे। यही माँग Ÿार प्रदेष लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को हटाने के लिए की जा रही है। सरकार को यह समझना होगा कि राजकीय सेवाएं राजनीतिक दल का काडर और कार्यकर्ता तैयार करने का माध्यम नहीं है बल्कि प्रदेष के सामाजिक-आर्थिक विकास और रूपान्तरण का संयंत्र है। यदि हर राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को ध्यान मे ंरखकर भर्ती, चयन और नियुक्ति प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेगा तो यह लोक सेवा में लूट प्रणाली को जन्म देगा, जैसा कि कभी पहले अमेरिका में हुआ करता था। किन्तुु 1883 के बाद जब अमेरिकी संसद ने पेण्डलटन अधिनियम पारित कर सिविल सेवा सुधार कार्यक्रमों की षुरूआत की और स्पायल सिस्टम को समाप्त करके योग्यता आधारित खुली भर्ती परीक्षा का आयोजन षुरू किया तो अमेरिका जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन बैठा जहां सबसे ज्यादा नोबल पुरस्कार विजेता, ओलम्पिक पदक विजेता, षोध और अनुसंधान, सामाजिक और आर्थिक विकास हुआ जिसके पीछे एक महŸवपूर्ण कारण सिविल सेवाओं की भर्ती में सुधार करना था।
        राजकीय सेवाओं में इसलिए आवष्यक है कि एससी, एसटी, ओबीसी, महिलाओं अन्य को जो आरक्षण दिया गया है उनका प्रतिनिधित्व सुनिष्चित करने के लिए सामान्य अभ्यर्थियों के साथ-साथ साफ-सुथरी और संदेह से परे भर्ती प्रक्रिया अपनायी जाए और ऐसा सिर्फ होना ही नहीं, दिखना भी चाहिए तभी Ÿार प्रदेष सामाजिक-आर्थिक विकास में आगे बढ़ सकेगा वरना छात्रों का आक्रोष और बढ़ता हुआ क्षोभ सरकार के लिए अन्तिम विदायी गीत होगा।


डाॅ. पी. एम. त्रिपाठी, निदेषक, वैद्स आईसीएस लखनऊ

2 comments:

  1. लेखन में थोड़ी भाषाई अशुद्धि हो गयी है, कृपया ध्यान रखें|

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  2. Very informative, thanks for posting such informative content. Expecting more from you.
    Free Marriage Bureau

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