यूपी का
व्यापम
राजकीय सेवाओं
में सफलता,
सामाजिक यष
और सम्मान
दिलाती है।
हर माता-पिता
यह चाहते
हैं कि
उनका बेटा-बेटी
आईएएस, पीसीएस,
इंजीनियर, डाॅक्टर
बने, या
फिर किसी
अन्य सरकारी
सेवा में
उन्हें नौकरी
करने का
अवसर मिले।
इसके लिए
छात्र-छात्राएं कठोर
परिश्रम करते
हैं, साल-दर-साल
प्रारंभिक, मुख्य
परीक्षा या
साक्षात्कार में
सफलता-विफलता
से दो-चार
होते हैं
और फिर
उसी मनोयोग
से अगली
परीक्षा की
तैयारी में
दुगुनी मेहनत
के साथ
जुट जाते
हैं। लेकिन
दुःख तब
होता है
जब ऐसे
परिश्रमी और
योग्य छात्र-छात्राओं का
चयन व्यवस्थागत दोशों
एवं राजनीतिक विचारधारा और
हस्तक्षेप के
कारण नहीं
हो पाता।
उŸार
प्रदेष में
विगत तीन
वर्शों में
राज्य लोक
सेवा आयोग
द्वारा जितनी
भी रिक्तियों के
लिए भर्ती
और चयन
प्रक्रिया की
गयी वह
सब किन्हीं
न किन्हीं
कारणों से
विवादग्रस्त होती
चली गयी।
लेकिन इस
बार कारण
प्रषासनिक विफलता
नहीं, संस्थागत दोश
एवं राजनीतिक हस्तक्षेप कहीं
अधिक है।
प्रान्तीय सेवाओं
में चाहे
वह इंजीनियरिंग हो,
मेडिकल या
फिर सिविल
सेवा, समुदाय
विषेश के
लोगों की
जिस प्रकार
भर्ती की
गयी, साक्षात्कार में
जितने अधिक
अंक दिए
गए, अनावष्यक गोपनीयता बरती
गयी, चयन
प्रक्रिया के
प्रारूप में
बदलाव किया
गया और
तमाम आरोपों
के बावजूद
आयोग की
निश्पक्षता और
षुचिता को
बहाल करने
की कोषिष
नहीं की
गयी उससे
साफ पता
चलता है
कि राज्य
सरकार अगले
चुनाव के
पहले अपने
लोगों को
अधिकाधिक पदों
पर नियुक्त
कर देना
चाहती है
तथा एक
खतरनाक और
गंभीर राजनीतिक सोच
के तहत
नियुक्तियों में
धार्मिक एवं
जातिगत कार्ड
का इस्तेमाल कर
रही है।
यह उŸार
प्रदेष का
एक छोटा
व्यापम है
जिसमें यद्यपि
कि किसी
की हत्या
या खुदकुषी
या संदिग्ध
मौत के
आरोप तो
नहीं है
लेकिन छात्रों
में गहरा
आक्रोष और
पीड़ा है।
यह सिर्फ
लोक सेवा
आयोग ही
नही बल्कि
उŸार
प्रदेष के
अन्य सभी
भर्ती और
चयन आयोगों
और बोर्ड
पर गंभीर
आरोप है
कि क्षेत्र
विषेश, जाति
और समुदाय
विषेश के
लोगों को
लेखपाल से
लेकर षिक्षक,
सिपाही से
लेकर इंस्पेक्टर तथा
डाॅक्टर-इंजीनियर से
लेकर एसडीएम
तक के
पदों पर
राजनीतिक सोच
के तहत
भयंकर अनियमितताओं और
प्रक्रियाओं का
दुरपयोग करते
हुए नियुक्त
किया जा
रहा है।
सुप्रीम कोर्ट
ने अभी
हाल ही
के एक
निर्णय में
ऐसे ही
एक चयन
आयोग के
अध्यक्ष और
सदस्य को
कार्य करने
से रोक
दिया क्योंकि
वे इस
पद के
योग्य नहीं
थे। यही
माँग उŸार
प्रदेष लोक
सेवा आयोग
के अध्यक्ष
को हटाने
के लिए
की जा
रही है।
सरकार को
यह समझना
होगा कि
राजकीय सेवाएं
राजनीतिक दल
का काडर
और कार्यकर्ता तैयार
करने का
माध्यम नहीं
है बल्कि
प्रदेष के
सामाजिक-आर्थिक
विकास और
रूपान्तरण का
संयंत्र है।
यदि हर
राजनीतिक दल
अपने वोट
बैंक को
ध्यान मे
ंरखकर भर्ती,
चयन और
नियुक्ति प्रक्रिया में
हस्तक्षेप करेगा
तो यह
लोक सेवा
में लूट
प्रणाली को
जन्म देगा,
जैसा कि
कभी पहले
अमेरिका में
हुआ करता
था। किन्तुु
1883 के बाद
जब अमेरिकी
संसद ने
पेण्डलटन अधिनियम
पारित कर
सिविल सेवा
सुधार कार्यक्रमों की
षुरूआत की
और स्पायल
सिस्टम को
समाप्त करके
योग्यता आधारित
खुली भर्ती
परीक्षा का
आयोजन षुरू
किया तो
अमेरिका जल्द
ही दुनिया
की सबसे
बड़ी ताकत
बन बैठा
जहां सबसे
ज्यादा नोबल
पुरस्कार विजेता,
ओलम्पिक पदक
विजेता, षोध
और अनुसंधान, सामाजिक
और आर्थिक
विकास हुआ
जिसके पीछे
एक महŸवपूर्ण
कारण सिविल
सेवाओं की
भर्ती में
सुधार करना
था।
राजकीय सेवाओं
में इसलिए
आवष्यक है
कि एससी,
एसटी, ओबीसी,
महिलाओं व
अन्य को
जो आरक्षण
दिया गया
है उनका
प्रतिनिधित्व सुनिष्चित करने
के लिए
सामान्य अभ्यर्थियों के
साथ-साथ
साफ-सुथरी
और संदेह
से परे
भर्ती प्रक्रिया अपनायी
जाए और
ऐसा सिर्फ
होना ही
नहीं, दिखना
भी चाहिए
तभी उŸार
प्रदेष सामाजिक-आर्थिक
विकास में
आगे बढ़
सकेगा वरना
छात्रों का
आक्रोष और
बढ़ता हुआ
क्षोभ सरकार
के लिए
अन्तिम विदायी
गीत होगा।
डाॅ. पी.
एम. त्रिपाठी, निदेषक,
वैद्स आईसीएस
लखनऊ