अच्छे दिन की हकीकत
मोदी सरकार के एक वर्श पूरा होने पर यह चर्चा जोर-षोर से हो रही है कि क्या वास्तव में अच्छे दिन आ गये जैसा कि भाजपा ने लोकसभा के अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था। विपक्षी दलों का मानना है कि उपलब्धियों के नाम पर सिर्फ षून्य है, केवल बड़ी-बड़ी बाते की गयीं, लोकलुभावन सपने दिखाए गए, यहाँ तक कि काला धन वापस लाना भी केवल एक राजनीतिक जुमला भर था। सरकार के आलोचक यह भी कहते हैं कि मोदी सिर्फ विदेषी दौरों पर रहते हैं और देष की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए न उनके पास समय है और न उनकी प्राथमिकता है। किसानों की आत्महत्या, फसलों पर मौसम की मार, लगातार बढ़ती हुई मंहगाई, जीएसटी विधेयक और भूमि अधिग्रहण कानून पर होने वाला विवाद, कुल मिलाकर इन सबने सरकार के लिए एक नकारात्मक स्थिति पैदा की है लेकिन यदि एक वर्श के कार्यकाल का निश्पक्ष मूल्यांकन किया जाए तो श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कई उपलब्धियां हासिल की है। कई सालों बाद संसद में अपेक्षा से अधिक कामकाज हुआ, 40 से अधिक विधेयक पारित हुए, भारत-बांग्लादेष सीमा विवाद पर कानून बना और सरकार तेजी से काम करती हुई भी दिखाई-सुनाई पड़ी। यह एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है कि एक वर्श का समय बीतने के बावजूद अभी तक भ्रश्टाचार, घपले या घोटाले का कोई आरोप सरकार पर नही लगा और मोदी सरकार ने अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर भारत की साख और प्रतिश्ठा में वृद्धि की है तथा भारत को एक उभरती हुई महाषक्ति के रूप में पूरे विष्व की मान्यता मिली है। अमेरिका, चीन, जापान सहित पड़ोसी देषों के साथ भी हमारे संबंध पुनर्जीवित हो रहे हैं। श्री नरेन्द्र मोदी की विदेष यात्राओं ने भारत को विष्व विमर्ष की परिधि में ला दिया है लेकिन फिर भी जनता के मन में वो उत्साह और सरकार के प्रति वैसा समर्थन नहीं है जैसा कि श्री नरेन्द्र मोदी से एक साल पहले लोगांे की अपेक्षाएं थी। उसके पीछे कारण यह है कि बिजली, सड़क, पानी, स्वास्थ्य, षिक्षा, रोजगार और आवास जैसे मसले जो हर साधारण इन्सान को सीधे और गहरे प्रभावित करते हैं, उनमें कोई सकारात्मक परिवर्तन और सुधार होता नहीं दिखाई दिया। श्री नरेन्द्र मोदी ने जनता के मन में जो ऊँचे-ऊँचे सपने और मंसूबे पैदा कर दिए थे वे एक साल बीतने पर भी यथार्थ में बदलते नहीं दिखाई दे रहे हैं। जनता रातो-रात जैसा परिवर्तन चाहती है वैसा यथार्थ में हो पाना संभव भी नहीं है। नागरिक हितों से जुड़े ज्यादातर विशय राज्य सरकार की मषीनरी से संचालित और प्रभावित होते हैं साथ ही गत वर्शों में श्री मनमोहन सिंह की सरकार में जिस नीति-निर्णय पक्षाघात की स्थिति पैदा हो गयी थी, नवाचार और पहल करने की कार्य-संस्कृति लगभग समाप्त हो चुकी थी, उसे फिर से जीवित और सक्रिय करना विरोधी राज्य सरकारों को साथ में लेकर चलना और कहे गये हर वादे को साल भर के अन्दर पूरा कर देना संभव भी नहीं है फिर भी सरकार की कार्यषैली, प्रभाव और परिणाम सन्तोशजनक है। जैसे-जैसे समय बीतेगा, जमीन पर सपने आकार लेते दिखाई देंगे। इतने विषाल, विशमता और विविधता से भरे देष को विकास की राह पर एक साथ लेकर चलना यूँ भी कोई आसान काम नहीं है। इसलिए सरकार की हकीकत को समझने के लिए हमें कुछ और वक्त देना होगा। जैसा कि दुश्यंत कहते हैं-
’’इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ़ लाओ दोस्तो,
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।।’’
डा0 प्रत्यूश मणि त्रिपाठी, निदेषक वैद्स आईसीएस लखनऊ