निश्चित रूप से पिछले करीब एक दशक और दो चुनावों से गुजरात में स्थिर और विकासशील सरकार देकर नरेंद्र मोदी ने अपनी क्षमता साबित कर दी है लेकिन अब तीसरी बार चुनावों को बहुमत से जीतकर सत्ता में बरकरार रहने की चुनौती ज्यादा बड़ी है।
बेशक पिछले एक दशक में मोदी ने वाइब्रेंट गुजरात की एक खास छवि बनाई है, अपने शासनकाल में उन्होंने गुजरात को शाइनिंग की राह पर आगे बढाया है, जिससे उन्हें वाहवाही भी मिली है। ये माना जाने लगा है कि उनमें बेहतर गर्वनेंस की जबदस्त क्षमता है और यही बात फिलहाल उन्हें दूसरे नेताओं से अलग भी कर रही है। उनके गुजरात के विकास मॉडल को उदाहरण के तौर पर पूरे देश में पेश किया जाने लगा है.. लेकिन बहुत सी बातें और भी हैं जो मोदी के बारे में कही जाती रही हैं..इनमें सवाल भी हैं...कहीं न कहीं उन्हें लेकर एक खास सोच भी..
१. क्या मोदी के व्यवहार, सोच और स्वाभाव में बदलाव आया है? क्या वह अब अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने को तैयार हैं..मोदी में अपने अब तक के शासनकाल में कभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा कि अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी सोच वास्तव में है क्या? ..वह हमेशा अपने भाषणों में छह करोड़ गुजरातियों की अस्मिता की बात करते हैं..क्या ये कहते समय उनका आशय अल्पसंख्यक गुजरातियों को भी लेकर होता है...क्या वाकई उन्होंने उन्हें जोड़ा है या नहीं?
२. न्यायालय ने उनके दो खास सहयोगियों को गुजरात दंगों की साजिश रचने का दोषी करार दिया है..बेशक इसके छींटे तो उन पर भी पड़े ही हैं. यानि उनका खुद का दामन पाक साफ नहीं कहा जा सकता।
३. खुद उनके राज्य में उनके विरोधियों की संख्या बढती जा रही है। गुजरात बीजेपी में उनके विरोधी कम नहीं। मोदी राज में गुजरात में बीजेपी के सांगठनिक ढांचे का कोई मतलब नहीं रह गया है। वहां बीजेपी का मतलब है नरेंद्र मोदी। अगर मोदी किसी को नहीं चाहते तो उसका गुजरात बीजेपी में बने रहना या उबर पाना मुश्किल है, लिहाजा गुजरात बीजेपी के कई बड़े नेता उनके कारण पार्टी छोड़ चुके हैं...इन विरोधियों के कारण उन्हें लगातार चुनौतियां भी मिलती रही हैं..इस बार ये चुनौती ज्यादा बड़ी है। उनके विरोध में केशुभाई पटेल, राणा से लेकर हाल में विधानसभा चुनावों में खड़ी हुईं हरेन पांड्या की पत्नी जागृति पांड्या तक हैं। कांग्रेस उन्हें हर हाल में घेरना चाहती है और राज्य में विपक्षी पार्टी होने के नाते उसका इसके लिए कोशिश करना स्वाभाविक भी है।
४. खुद राष्ट्रीय स्तर पर उनकी अपनी ही पार्टी में उनकी स्वीकार्यता को लेकर अजीब सी स्थिति है। बीजेपी का एक वर्ग जहां उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में लाना चाहता है तो दूसरा वर्ग इसे लेकर शंकित है। उन्हें लगता है कि इससे अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण हो जायेगा, जिससे बीजेपी को नुकसान होगा।
५. एक और सवाल अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता का है। हालांकि माना जा रहा है उन्हें लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो बर्फ जमी हुई थी, वो अब पिघलने लगी है। पिछले दिनों ब्रिटेन के राजदूत खुद उनसे मिलने अहमदाबाद पहुंचे। अमेरिका और यूरोप के दूसरे देश भी अब उनसे संबंध बेहतर करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि अगर मोदी अब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो विदेशों से उन्हें व्यापार और द्विपक्षीय सहयोग के लिए आमंत्रण मिलेंगे।
६. निराशाजनक पहलू ये है कि गुजरात में कृषि विकास दर और मानव विकास सूचकांक में गिरावट आई है। यहां तक कि गुजरात में बच्चों के कुपोषण की खबरें भी आई हैं। गुजरात में उद्योग धंधों का तो विकास हुआ है लेकिन कृषि को लेकर ज्यादा कुछ नहीं किया गया। इस बार वहां मानसून बेहतर नहीं रहा और कृषि पर इसका खराब असर पड़ा ..लिहाजा किसान नाराज है कि मोदी ने दस सालों में उसके लिए खास कुछ नहीं किया है।
तो ये साफ है कि गुजरात चुनावों में मोदी को इन सारे पहलूओं का सामना करना पडेग़ा या यों कहिये कि ये सारी ही बातें मोदी गुजरात चुनाव अभियान पर असर डालेंगी। यदि इस बार वह सरकार बनाने में सफल रहे तो निश्चित रूप से उनका प्रभाव बढेगा, कद बड़ा होगा, स्वीकार्यता और करिश्मे में भी बढोतरी होगी। इससे ये भी साबित होगा कि पिछले दो चुनावों में उनकी जीत तुक्का या संयोग नहीं थीं। ..लेकिन अगर इन चुनावों में उनका प्रदर्शन आशानुरुप नहीं रहता है तो बीजेपी के आकाओं को सोचना होगा कि राष्ट्रीय राजनीति में विचार और परिवर्तन की जरूरत है। बीजेपी की समस्या ये है कि उसके शीर्ष नेतृत्व में अलगाव बहुत है और सोच-विचार में भी मतैक्य नहीं है। सही बात ये भी है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को जो हाल फिलहाल है उसे देखकर लगता है कि उन्हें शत्रु की जरूरत नहीं अपने दुश्मन वो खुद हैं।
गुजरात के बाद लोकसभा के वर्ष २०१४ में होने वाले चुनाव चुनौती साबित होंगे..भले ही गुजरात फतेह का सपना पूरा हो जाये।
No comments:
Post a Comment