राष्टीय सुरक्षा के सरोकार
याद कीजिए 1962 का भारत-चीन युद्ध जब साम्यवादी दलों ने अतिरेक में आकर चीन के इस हमलें को न सिर्फ सही बताया बल्कि उसका साथ भी दिया था। तब से अब तक हालात काफी बदल चुके हैं। अब राष्टी य सुरक्षा को खतरा सिर्फ सीमापार से ही नहीं है बल्कि देश के भीतर ही नक्सलवाद, आतंकवाद, माओवाद, क्षेत्रवाद और धर्मान्ध कट्टरता ने बहुत से खतरे पैदा कर दिए हैं। ऐसी किसी भी विभाजनकारी सोच को मजबूती से रोकने की जरूरत है जो देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरे में डालती हो। सभी राजनीतिक दलों का यह राष्टी य करव्य भी है कि वे सोचें कि सिर्फ जब तक भारत खुश हाल रहेगा, सुरक्षित रहेगा और आगे बढ़ेगा केवल तभी वे भी सुरक्षित और खुशहाल रहेंगे और आगे बढ़ेंगे।
यह भी सोचने की बात है कि धर्म, जाति या किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता देश की भावनात्मक और राष्टी य एकता को तोड़ती है। खतरा हमेश बाहर से ही नही आता, यह भीतर भी मौजूद रहता है। इसलिए भारत के सभी राजनीतिक दलों और नागरिकों को यह समझना होगा कि कुछ मुद्दें ऐसे जरूर होते हैं जिन पर पूरे देश की सोच एक होनी ही नही चाहिए, दिखनी भी चाहिए और राष्टी य सुरक्षा ऐसा ही एक विष य है।
-डाॅ. प्रत्यूशमणि त्रिपाठी
कोस्ट गार्ड के डीआईजी बी के लोशली का हाल में दिया गया यह बयान कि 31 दिसंबर 2014 की रात आतंकियों ने अपनी नौका को खुद नही उड़ाया था बल्कि यह काम कोस्टगार्ड ने किया था कितना सही है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा और सेना मुख्यालय द्वारा इस पर बोर्ड आॅफ इन्क्वायरी का गठन भी कर दिया गया है लेकिन हैरत की बात यह है कि राष्टीय सुरक्षा से जुड़े ऐसे महत्त वपूर्ण मसलों पर भी राजनीतिक दल सिर्फ सियासत करते हैं और लगता है कि कांग्रेस स्वयं उस नारे को जल्द से जल्द साकार कर देना चाहती है जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत कहा था। दुखद यह है कि कांग्रेस के प्रवक्ता राष्टी य सुरक्षा की चिन्ता करते कम और पाकिस्तान के पैरोकार ज्यादा लग रहे थे। यह तो पता नही कि डीआईजी लोशली ने किस वजह से ऐसा गैरजिम्मेदराना बयान दिया लेकिन ऐसी सैन्य कार्यवाहियों के विष य में जो आवश य क गोपनीयता बरतना जरूरी होता है या रक्षा मंत्रालय अथवा सरकार का जो आधिकारिक बयान आता है उसे ही सच मानना चाहिए वरना मुम्बई जैसे हालात दोहराने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अगर यह मान भी लिया जाए कि रक्षा मंत्री का बयान पूरी सच्चाई को उजागर नहीं करता या सरकार इसमें कुछ छुपाने का प्रयास कर रही है तो भी यह सरकार की पहली जिम्मेदारी है कि देश की सुरक्षा से जुड़े प्रश न पर जो भी उचित समझे वह करे और सेना का मनोबल बनाए रखे। इसके लिए अगर सरकार को कुछ छिपाना या बहुत कुछ बताना जरूरी है तो वह सही भी है। अपनी सेनाओं का पक्ष रखना और उनका साथ देना सरकार की जिम्मेदारी भी है। इसलिए कम से कम राष्टीय सुरक्षा से जुड़े विष यों पर किसी भी राजनीतिक दल द्वारा ऐसा संदेश नहीं दिया जाना चाहिए कि भारत ऐसे मामलों पर भी राजनीतिक रूप से बंटा हुआ है और देश के जिम्मेदार राजनीतिक दलों को ऐसे संवेदनशील और गंभीर मुद्दों की या तो समझ नहीं है या फिर वे जानबूझ कर राजनीतिक लाभ-हानि के दृश्ष्टि से इस तरह की बयानबाजी करते हैं।
याद कीजिए 1962 का भारत-चीन युद्ध जब साम्यवादी दलों ने अतिरेक में आकर चीन के इस हमलें को न सिर्फ सही बताया बल्कि उसका साथ भी दिया था। तब से अब तक हालात काफी बदल चुके हैं। अब राष्टी य सुरक्षा को खतरा सिर्फ सीमापार से ही नहीं है बल्कि देश के भीतर ही नक्सलवाद, आतंकवाद, माओवाद, क्षेत्रवाद और धर्मान्ध कट्टरता ने बहुत से खतरे पैदा कर दिए हैं। ऐसी किसी भी विभाजनकारी सोच को मजबूती से रोकने की जरूरत है जो देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरे में डालती हो। सभी राजनीतिक दलों का यह राष्टी य करव्य भी है कि वे सोचें कि सिर्फ जब तक भारत खुश हाल रहेगा, सुरक्षित रहेगा और आगे बढ़ेगा केवल तभी वे भी सुरक्षित और खुशहाल रहेंगे और आगे बढ़ेंगे।
यह भी सोचने की बात है कि धर्म, जाति या किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता देश की भावनात्मक और राष्टी य एकता को तोड़ती है। खतरा हमेश बाहर से ही नही आता, यह भीतर भी मौजूद रहता है। इसलिए भारत के सभी राजनीतिक दलों और नागरिकों को यह समझना होगा कि कुछ मुद्दें ऐसे जरूर होते हैं जिन पर पूरे देश की सोच एक होनी ही नही चाहिए, दिखनी भी चाहिए और राष्टी य सुरक्षा ऐसा ही एक विष य है।
-डाॅ. प्रत्यूशमणि त्रिपाठी
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