आतंक की ’मुफ्ती’ सोच
जम्मू-कष्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद 20 मार्च 2015 को कठुआ जिले के सीमा से सटे एक थाने पर जिस तरह आतंकी हमला हुआ और हमारे पुलिस के जवान षहीद हुए तथा आतंकियों ने न सिर्फ थाने पर कब्जा कर लिया बल्कि एक बार फिर उस खतरे की घंटी बजा दी जिसको लगातार राज्य की मुफ्ती सरकार नज़रअंदाज करती रही है। चुनाव के ठीक बाद पाकिस्तान, आतंकियों, हुर्रियत और सीमापार के सहयोग के कारण भारी मतदान षांतिपूर्ण तरीके से हुआ, ऐसी मुफ्ती साहब की सोच है। उसके ठीक बाद कट्टरपंथी और अलगावादी नेता मसरत आलम की रिहाई का फैसला, यह भी मुफ्ती साहब की सोच है। जाहिर है कि वे भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर कम और सीमापार के सहयोगी के रूप में अधिक कार्य करते दिखाई दे रहे हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जम्म-कष्मीर में बड़ी तादाद में लोगों ने निकलकर षांतिपूर्ण तरीके से न सिर्फ मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि भारतीय राश्ट्रराज्य की व्यवस्था में अपना विष्वास भी जताया है। इसके लिए हमारे देष का निर्वाचन आयोग, सेनाआंे और सुरक्षा बलों की तत्पर कार्यवाही, स्थानीय प्रषासन और खुद जम्मू-कष्मीर के लोग प्रषंसा के पात्र हैं। मुफ्ती साहब इन सबकी अनदेखी करके न सिर्फ उस जनादेष की अवज्ञा कर रहे हैं बल्कि उन संवैधानिक प्रावधानों का भी पालन नहीं कर रहे हैं जिसके तहत उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री षपथ ली है। यह ठीक है कि जम्मू-कष्मीर एक बेहद जटिल और संवेदनषील राजनीतिक मसला है लेकिन देष की सुरक्षा अमनोआमान और संप्रभुता से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। मुफ्ती साहब की राजनीतिक मजबूरियां कुछ भी हांे अब वे राज्य के मुख्यमंत्री हैं और राज्य की कानून व्यवस्था बनाये रखना उनकी पहली महŸवपूर्ण जि़म्मेदारी है। बीजेपी को भी यह सोचना होगा कि विपरीत ध्रुव वाले सिद्धान्त, सोच और राजनीतिक विचारधारा के साथ जो गठबंधन उन्होंने किया है उसकी जिम्मेदारी से यह कह कर बच नहीं सकते कि मुफ्ती सरकार ने ऐसे संवेदनषील मसलों पर उनसे कोई चर्चा या पूर्व परामर्ष नहीं किया था। आज जम्मू-कष्मीर सिर्फ और सिर्फ विकास और समृद्धि चाहता है, अलगाव या बंटवारा नहीं। लंबे समय से चली आ रही आतंकी परिस्थितियों के कारण राज्य का विकास, पर्यटन उद्योग और आम कष्मीरी नागरिक बुरी तरह से त्रस्त और प्रभावित रहा है। इसमंे भी सबसे दयनीय स्थिति उन लाखों कष्मीरी पंडितों की है जिन्हें अपनी जड़ो और घरों से उजड़ने का दुख और दंष अपने ही राज्य में झेलना पड़ा है। अगर इस राज्य की समस्या को सुलझाना है तो इसे सिर्फ और सिर्फ जम्मू-कष्मीर के लोग और भारत सरकार आपसी सहयोग और संवाद से समस्याओं को दूर कर सकते हैं। मुफ्ती साहब इतिहास के उस मुहाने पर खड़े हैं जहां से आने वाले समय में वे सूबे की नई तकदीर लिख सकते हैं या फिर अपनी गलत सियासी सोच और मंसूबों को पूरा कर सकते हैं। दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते। दुश्यंत की याद आती है जो कहते थें-
’’उनके पांव के नीचे कोई जमीं नहीं,
कमाल ये है कि फिर उन्हें यकीन नही,
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहँू,
मैं इन नजारों का अंधा तमाषबीन नहीं।’’
डाॅ प्रत्यूशमणि त्रिपाठी
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