Tuesday, 14 May 2013

फेसबुक बन गया फेकबुक

फेसबुक क्रांति जितनी तेजी से फैली उतनी ही तेजी से अब थमने लगी है। इस ठहराव के पीछे कई कारण मौजूद है मगर उससे पहले ये जानना जरुरी है कि आखिर ऐसा क्या चुम्बकीय आकर्षण रहा होगा जो युवा इसकी तरफ खींचता ही चला गया। समाज और जीवन के बढते तनाव में फेसबुक जैसे मंच पर हर कोई सहज रुप से बातचीत के लिए उपलब्ध रहने लगा। जो अक्सर वास्तविक जीवन में छूट सा रहा था। 
तीन महत्वपूर्ण तथ्य है जो इस बात की पुष्टि भी करते है। इंस्टेंट कनेक्टिविटी जो कहीं भी कभी भी समाज, देश व दुनिया से जोडती है। दूसरा है इंडिविजुअलाईज्ड अटेंशन जिसमें व्यक्ति जैसी चाहै वैसी अभिव्यक्ति कर सकता है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण है सोशलाइजेशन में कमी क्योंकि अपनी व्यस्तताओं के चलते धीरे धीरे लोग खासकर युवा सामाजिक परिवेश से दूर होता चला गया और फेसबुक पर समय व्यतीत करने लगा। युवा तो खाने पीने जैसे दैनिक काम छोडकर इसके व्यसन के आदी हो गऐ।
फेसबुक के साथ ये जुडाव तो होना ही था क्योंकि 1990 के दशक के बाद की सूचना क्रांति के बाद फेसबुक मूवर आफ पब्लिक ओपिनियन बनकर उभरा। हर वर्ग के लोग इसका इस्तेमाल करने लगे। मास मोबलाइजेशन बढी है। विश्व  के विभिन्न हिस्सों की जानकारियां सहज ही इस एक मंच पर मित्रों व परिचितों के बीच साझा होने लगी। असम हिंसा, मिस्र क्रांति, दामिनी केस जैसे ना जाने कितने ही उदाहरण मौजूद है जो सोशल नेटवर्क के कारण सामने आऐ। काफी शॉप व कैंटीन की चर्चाऐं कमेंट्स व पोस्ट में तब्दील होने लगी और सहसा ही लोग इसके मोहपाश में फंसते चले गये।
फेसबुक रुपी दोधारी तलवार का अब खुमार कम होने लगा है क्योंकि लोग वास्तविक एवं आभासी दुनिया के इस फर्क को समझने लगे है और मानने लगे है कि इसका इस्तेमाल अधिक सार्थक नहीं है। यहां विचारों को फैंटेसाइज तो किया जा सकता है मगर उनको साकार होते देखना नामुमकिन है। यहां अभिव्यक्तियों के लिए तो जगह है मगर ढांढस मिले यह कहना मुश्किल है। 
साथ ही अगर देखा जाऐं तो जो लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि से है या टेक सेवी नहीं है वो तो किसी भी तरह इससे जुड नही पाएंगे।हालांकि फेसबुक तकनीक से लैस है मगर देश के विकास में सहायक नही हो पायी। नकली अकाऊंट, गलत सूचनाऐं, गैरकानूनी इस्तेमाल, गलत अफवाहों के कारण लोग खुद को ठगा सा महसूस करने लगे। जिसका प्रभाव सरकारी मशीनरी पर भी पडने लगा। साइबर ला सामने आऐ, आईटी कानून बनने लगे जिसने कई प्रकार के प्रतिबंध इस माध्यम पर लगा दिए। अमेरिका में हर महीने लगभग 6 मिलीयन लोग इस वर्चुअल वल्र्ड से बाहर आ रहे है और अब शायद भारतीय भी इस यथार्थ सत्य को समझने लगे है।




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